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नाम गुम जाएगा, ये गम मुझ को नहीं

चेहरा बदल जाएगा, ये भी मैं जानती हूं

जज़्बात ज़ाया हो जाएं, ये मुझ को मंज़ूर नहीं

सब कुछ कह ना सकुं गी, ये मैं मानती हूं

बस इसी खौफ से, हर पल कलम थामे रहती हूँ

कोइ सुने या ना सुने, मैं हरफ उकेरती रहती हूँ । ~अरशफा

हरफ = शब्द

उकेरना = तराशना

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2 thoughts on ““शायरी” ~अरशफा

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