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मोम तो रही नहीं
पत्थर भी ना बन सकी,
पहले सी ताज़ा नहीं
पुरानी नहीं हुई अभी,
सब से जुदा थी सो,
सब से जुदा हो गई,
मैं,
जितना भी तुम को मिली
उतना ही तुम से खो गई।

तंज़, सितम, शिकायतें
दुनिया के दस्तूर ना सीखे,
ना सिखाए गए,
जीत कर भी यहाँ
हारती चली गई,
मैं,
जितनी भी खुल कर हँसी,
उतना ही ग़म में खो गई।

मोम तो रही नहीं
पत्थर भी ना बन सकी।~अरशफा

{Self-portrait from the archive}

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