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चलते-चलते जो थक कर बैठा
तो यही अंजाम निकला,
वो करार जिसे मंज़िल था समझा
रहगुज़र निकला ।
ना हसरतों को पा के कुछ हुआ
ना ख्वाबों की ताबीर से कुछ मिला,
वो हसीन और दिलकश तो बहोत था
पर बेवफा निकला ।
वो करार जिसे मंजिल था समझा
रहगुज़र निकला ।
अब दिल फ़क़त दिल ही नहीं रहे
कुछ और नुक्ते भी अज़माते हैं
धड़कने के सिवा,
कभी बसा लिया, कभी खुआर किया
हर कोई यहाँ साहूकार निकला ।
चलते-चलते जो थक कर बैठा
तो यही अंजाम निकला,
वो करार जिसे मंज़िल था समझा
रहगुज़र निकला । ~अरशफा~