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हर लम्हा, हर बात को कह कर बताना लाज़िम नहीं होता। हर वक़्त बोलने से ज़ुबान का वज़न कुछ कम सा हो जाता है। बाज़ दफ़ा ख़ामोश रह कर देखना चाहिए कि कौन आप की खामोशी को सुन पाता है। कौन महसूस कर लेता है ‘कुछ नहीं हुआ ’ के पीछे के दर्द को, कौन ढूँढ लेता है ‘कोई बात नहीं ’ के पीछे छिपी बात को, कौन समेटता है अल्फ़ाज़ों के दरम्यान बिखरे सन्नाटे को।

अक्सर पुर-सुकून चेहरा, झिझकती नज़रें, बेबात हँसी, बेवजह चुप्पी, बेमतलब की मसरूफ़ियत कुछ छिपाने की कोशिश होते हैं। गौर से देखने पर, या यूँ कहूँ कि दिल से देखने पर माजरा समझ में आ जाता है। जैसे कि कुदरत के नज़ारे। देखा जाए तो शाम हर रोज़ ही आती है, सूरज हर रोज़ डूबता है पर हर शाम आसमान अलग कहानी सुनाता है। गहरे काले बादल रूमानियत का पैग़ाम देते हैं और साफ नीला आकाश अमन का।

कभी सोचा है, वो कौन चित्रकार है जो फलक को रंग कर इतनी आसानी से अपना हर एहसास बशर तक पहुँचाता है? और उसे कैसा लगता होगा जब बदले में उसे सुननी पड़ती हैं शिकायतें, कि आज आसमान आग बरसा रहा है, आज बरसात ने काम ख़राब कर दिया? उस का कहा सुनने की बजाय हम अपना राग अलापना शुरू कर देते हैं । हम इन्सान आपस में भी ऐसे ही हैं ; बेहिस और ख़ुदगर्ज़।

तो क्यों ना थोड़ा ठहर जाएँ, इस भाग-दौड़ से अलहदा हो कर देखें अपने-अपने आसमान की तरफ़। देखें अपनों को, कायनात को, खुद को और महसूस करें वो जो कहा नहीं जा रहा लेकिन सुना जा सकता है, वो जो अब तक कहा नहीं गया लेकिन, अब कहा जा सकता है। ~अरशफा

Both pictures clicked at the back yard; same place, different moods. “Who is this artist?”

बाज़ दफा = sometimes

पुर-सुकून = peaceful

रूमानियत = romanticism

फलक = sky

बशर = human being

बेहिस= insensitive

अलहदा = separate

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2 thoughts on “ये कौन चित्रकार है? ~अरशफा

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