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द्वापर युग में एक भीष्म थे, कलयुग में भी अनेकों हैं जो उन्हीं की तरह सत्यनिष्ठ, विवेकवान, कर्मठ और साहसी हैं। फर्क सिर्फ़ इतना है कि पितामह ने ५८(58) दिनों तक बाणों की चुभन को सहा परंतु आज के भीष्म जीवन का हर क्षण बाणों की शय्या पर ही जीते हैं। ये बाण दिखाई नहीं देते, पर दर्द बहुत करते हैं। ~अरशफा

सत्यनिष्ठ = Truthful

विवेकवान = Discreet

कर्मठ = Hardworking

साहसी = Brave

{Pic: a self portrait at Brighton Beach, NSW, Australia}

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4 thoughts on “बाणों की शय्या ~अरशफा

  1. 𝚂𝚘𝚖𝚎𝚘𝚗𝚎 𝚛𝚒𝚐𝚑𝚝𝚕𝚢 𝚜𝚊𝚒𝚍 𝚝𝚑𝚊𝚝 𝙻𝚒𝚏𝚎 𝚒𝚜 𝚗𝚘𝚝 𝚊 𝚋𝚎𝚍 𝚘𝚏 𝚛𝚘𝚜𝚎𝚜 𝚋𝚞𝚝 𝚘𝚏 𝚝𝚑𝚘𝚛𝚗𝚜 . 𝙾𝚗𝚎 𝚑𝚊𝚜 𝚝𝚘 𝚋𝚎 𝚊𝚍𝚎𝚙𝚝𝚒𝚟𝚎 𝚝𝚘 𝚒𝚝 𝚏𝚘𝚛 𝚜𝚞𝚛𝚟𝚒𝚟𝚊𝚕. 𝚃𝚛𝚞𝚝𝚑 𝚊𝚕𝚠𝚊𝚢𝚜 𝚛𝚎𝚖𝚊𝚒𝚗𝚜 𝚝𝚛𝚒𝚞𝚖𝚙𝚑𝚊𝚗𝚝 𝚒𝚗𝚜𝚙𝚒𝚝𝚎 𝚘𝚏 𝚜𝚘 𝚖𝚊𝚗𝚢 𝚑𝚊𝚛𝚍𝚜𝚑𝚒𝚙𝚜 𝚌𝚘𝚖𝚒𝚗𝚐 𝚒𝚗 𝚝𝚑𝚎 𝚠𝚊𝚢. 𝚂𝚊𝚖𝚎 𝚠𝚊𝚢 𝙱𝚑𝚒𝚜𝚑𝚊𝚖 𝙿𝚒𝚝𝚊𝚖𝚊 “𝚜 𝚙𝚕𝚎𝚍𝚐𝚎 𝚘𝚏 𝙼𝚘𝚔𝚊𝚜𝚑 𝚗𝚘𝚝 𝚋𝚎𝚏𝚘𝚛𝚎 𝙷𝚎 𝚜𝚎𝚎𝚜 𝙿𝚊𝚗𝚍𝚊𝚟𝚊𝚜 𝚁𝚊𝚊𝚓 𝚌𝚘𝚞𝚕𝚍𝚗’𝚝 𝚋𝚘𝚠 𝚑𝚒𝚜 𝚍𝚎𝚝𝚎𝚛𝚖𝚒𝚗𝚊𝚝𝚒𝚘𝚗 𝚊𝚐𝚊𝚒𝚗𝚜𝚝 𝚜𝚘 𝚖𝚊𝚗𝚢 𝚘𝚍𝚍𝚜. 𝙰𝚜 𝙳𝚊𝚢𝚕𝚒𝚐𝚑𝚝 𝚌𝚘𝚖𝚎𝚜 𝚊𝚏𝚝𝚎𝚛 𝚎𝚟𝚎𝚛𝚢 𝚗𝚒𝚐𝚑𝚝 𝚘𝚗𝚎 𝚒𝚜 𝚋𝚘𝚞𝚗𝚍 𝚝𝚘 𝚜𝚞𝚌𝚌𝚎𝚎𝚍 𝚠𝚑𝚘 𝚒𝚜 𝚑𝚊𝚟𝚒𝚗𝚐 𝚑𝚒𝚜 𝚎𝚢𝚎 𝚘𝚗 𝚐𝚘𝚊𝚕.

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