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धुंध की चादर ओढ़े
इक हसीन सी सुबह !
ऐसे लगता है मानो
कुदरत कोई राज़ छिपा रही हो,
या फिर कोई दुल्हन
अपने ही घूँघट में सिमटी जा रही हो।
इक ठंडी सी सिहरन
कि आग़ोश में भर लेने को जी चाहे,
पास होते हुए भी मानो
कहीं दूर जा रही हो।
धुंध की चादर ओढ़े
इक हसीन सी सुबह !
ऐसे लगता है मानो
अंगड़ाई तो ली
पर अकड़न टूटी नहीं अभी,
मुस्कान लबों पे बैठी
और फिर छूटी नहीं कभी।
रात तो गई
पर खुमारी उतर नहीं रही,
सूरज की भी नींद मानो
टूटी नहीं अभी।
धुंध की चादर ओढ़े
इक हसीन सी, सुबह !
~अरशफा

{Pics- I captured a beautiful foggy morning from my backyard, 1/2/25}

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