Share to Spread Love

हम क्यूँ चलते रहते हैं ?
कहीं थम क्यूँ नहीं जाते ?
तपती हवा की मानिंद बस बहते रहते हैं।
वक़्त की कमी हर वक़्त क्यूँ बनी रहती है ?
घड़ी की सुइयों पर कदम रख भटकते रहते हैं।
हम कुछ गुनगुनाते क्यूँ नहीं ?
इक सन्नाटे की मानिंद बस पसरे रहते हैं।
नहीं सुन पाते बारिश में बजते नग़मों को,
मुस्कुराते चेहरे की लकीरों को पढ़ नहीं पाते।
उन आँखों को देख कर देखते रहने का जी क्यूँ नहीं चाहता ?
किसी के अश्कों में भीग क्यूँ नहीं जाते ?
गुल-ए-बहार नहीं उठाते अब रूमानियत की लहरें,
अपनों को बाहों में भींच क्यूँ नहीं पाते ?
हम क्यूँ थकते रहते हैं ?
कभी घर पर ही क्यूँ नहीं रुक जाते ?
सूखे रेगिस्तान की मानिंद बस तरसते रहते हैं,
हम, बरस क्यूँ नहीं जाते ?!
~अरशफा

मानिंद = तरह

गुल-ए-बहार = वसंत का फूल

98

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *