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लिखने दो कोई कहानी
बारिश की बूँदों को,
काँच की इन खिड़कियों पे।
एहसास पहचान ना ले
देख ना ले कोई तुम को,
डाल दो परदे,
काँच की इन खिड़कियों पे।
*
गर्मी की सहर हो
या सर्दी की दोपहर हो,
रौशन होती हैं कुँदन सी
जब पड़ती हैं किरणें,
काँच की इन खिड़कियों पे।
*
आंधियाँ जब चलती हैं
धूल उड़ा ले आती हैं,
मन जब बुझ जाता है
उँगली से लिखना नाम कोई,
काँच की इन खिड़कियों पे।
*
अँधेरा जब हो जाए
तन्हा जब खुद को पाओ,
झुक जाना,
और तलाशना अक्स कोई,
काँच की इन खिड़कियों पे।
*
लिखने दो कोई कहानी
बारिश की बूँदों को,
काँच की इन खिड़कियों पे।
~अरशफा
(Credit for the gif goes to the rightful owner)
Beautiful
Thankful for the feedback!
Love it, so much depth! 🙂
Grateful for your valuable insight ! 😊