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🌹कुछ फूलों का मौसम होता है, और कुछ फूल अपना मौसम खुद बना लेते हैं। गुलाब तो अक्सर खिलते हैं लेकिन, वो इक गुलाब सब से हसीन होता है जो सिर्फ़ हमारे लिए खिला हो।
कहते हैं, फूलों की अपनी ज़ुबान होती है।इन का रंग कुछ पैग़ाम देता है, ख़ुशबू भी कुछ गुनगुनाती है जो सिर्फ़ देने या लेने वाले को ही समझ में आता है, किसी और को नहीं।ऐसे फूल मुरझा कर भी महकते रहते हैं, टूट कर भी बिखरते नहीं, बेरंग हो कर भी नायाब (unique/दुर्लभ) लगते हैं।
कभी ऐसी आला क़िस्म (excellent quality) का फूल मिले तो एहतियात से रख लेना, अपनी किसी डायरी में। वो वहाँ चुपचाप पड़ा रहेगा तुम्हारा बीता हुआ कल बन के। तुम यकीनन उसे भूल जाओगे पर वो याद रखेगा तुम्हें, उसे देने वाले को, उस पल को जब उस के ज़रिये कुछ कहा गया था।और कुछ सालों बाद, अचानक एक दिन जब तुम वो डायरी खोलोगे तो तुम्हारे रूबरू होगा इक सूखा हुआ फूल और कुछ महकते हुए पन्ने। ऐसा लगेगा मानो वो फूल इतना अरसा तुम्हारी दास्तान (story)उन पन्नों को सुनाता रहा हो और उन्हें छूते ही वो भूला हुआ वक़्त, जज़्बात और माहौल तुम्हारे ज़हन पर हावी हो जाएँगे। तुम्हारी भागती-दौड़ती ज़िंदगी चंद लम्हात (few moments/ कुछ समय) के लिए ठहर जाएगी। अपना अतीत फिर से जिओगे, मुस्कुराते होंठों और डबडबाती आँखों के साथ।और समझोगे कि क्या खोया, क्या पाया !
सच है, फूलों की भी अपनी एक ज़ुबान होती है और शायद, डायरी में दबे पड़े सूखे हुए फूल समय-यंत्र (time-machine)भी बन जाते हैं। ~अरशफा 🥀
{Pic: Self portrait of My Happy Feet in the warm company of that one Rose}
Superb 👍
Thank you 🙏🏻
History leaves sometimes bitter impression on mind cautioning to be cautious about the results which one has experienced in life. Similarly positive events do give strength to move forward. Both the experiences are fitted in the mind frame of memory box and these needn’t be kept somewhere in black and white. If one has to give introduction of self, probably more efforts are required for SELF RECOGNITION. Hence be like flowers which don’t speak their identity but are recognised by the fragrance they deliver.
Well said, thanks for your input!