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ख्वाबों की उड़ान

तूने देखी नहीं अभी,

बे-पर की परी शायद

देखी नहीं कभी।

मौजें जो बहर से उठती हैं

बहर में समा जाती हैं,

बूँद जो मोती बनी

तूने देखी नहीं कभी।

*

तुम रंज करो मुझ से

या तंज़ कसो मुझ पे,

तुम रश्क करो मुझ से

या फक्र करो मुझ पे।

सब्र की घड़ी मेरी

तूने देखी नहीं अभी,

बे-पर की परी शायद

देखी नहीं कभी। ~अरशफा

मौजें = लहरें

बहर = समुद्र

रंज = नाराज़गी

तंज़ = ताना

रश्क = जलन

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