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{Lockdown Shyaari}

आसमान कुछ ज़्यादा नीला हो गया है

परिंदे गा रहे हैं, फूल मुस्कुरा रहे हैं

अब तो सूरज भी कुछ ज़्यादा पीला हो गया है

बस इक बशर (इंसान) ही है, जो डरा सहमा बैठा है,

दुबक कर, मुँह  ढकाए बैठा है,

देखो तो !

झरनों का पानी कुछ ज़्यादा गीला हो गया है,

आसमान कुछ ज़्यादा नीला हो गया है।

तेरी नादानियों की ये सज़ा है,

तेरी जफाऐं ही तेरी खता है,

नरम रही है फिज़ा सदा ही,

अब ! 

उस का मिज़ाज़ कुछ नुकीला हो गया है,

आसमान कुछ ज़्यादा नीला हो गया है।

ये घर में तुझे रहना सिखा रही है,

भूली हुई रस्में याद दिला रही है,

 सीख लो ये सबक, 

फौरन !

के वक्त कुछ ज़्यादा संजीदा हो गया है ,

आसमान कुछ ज़्यादा नीला हो गया है

परिंदे गा रहे हैं, फूल मुस्कुरा रहे हैं

अब तो सूरज भी कुछ ज़्यादा पीला हो गया है ~अरशफा~

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10 thoughts on ““कुछ ज़्यादा” ~अरशफा

    1. Thanks for an overwhelming response. I have been busy with some other project, that is why there are gaps of days in posting. But, I will surely try to post on regular basis. Thanks again, readers like you make writing a real fun!

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