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ज़िंदगी अब कुछ और दिखा

रंज, सितम, घुटन ये बहुत हुआ,

कुछ नया सोच, कुछ बड़ा बना

ऐ ज़िंदगी, कुछ और दिखा ।

क्या हुआ उस प्यार का

जिसका मुझसे वादा था ?!

क्या हुआ उस जीत का ?!

मैं अभी भी हूँ उस को खोजता,

वो इत्र जो महका नहीं

तू वही बना,

कुछ नया सोच, नया दिखा ।

फुर्सत के दिन

अब बनते ही नहीं !

तारों के आँचल में

हम सोते नहीं !

लज़्ज़त जो अब आती नहीं

तू उसे बुला,

कुछ नया सोच, कुछ बड़ा बना,

ऐ ज़िंदगी, कुछ और दिखा । ~अरशफा

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2 thoughts on ““ऐ ज़िंदगी ” ~अरशफा

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