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सुना है उस की आँखें आइना हैं, 

चलो अपना चेहरा देख आओ ज़रा।

मुद्दत हुई साथ गैरों के रहते तुम्हें, 

जाओ खुद से ही मिल आओ ज़रा।

बन्द कमरे में कौन रोया, 

किसे पता चला,

खिड़की दरवाज़े खोल हँसता चेहरा देख आओ ज़रा।

जो फूल खिले थे उस के मुस्कुराने भर से,

उन्हीं फूलों की माला पिरो लाओ ज़रा।

आँधियाँ जिस शजर (पेड़) को हिला ना सकीं,

वो बहार में कैसे टूट गया,

 ये राज़ सब को बताओ ज़रा।

सुना है उस की आँखें आइना है,

चलो आपना चेहरा देख आओ ज़रा । ~अरशफा~ 

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4 thoughts on ““आँखें” ~अरशफा~

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